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जहाँ कृष्ण हैं वहाँ कुछ भी असंभव नहीं। दो खाइयों पर सेतु बना देना उनकी कूटनीति के बाएँ हाथ का खेल है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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