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मनुष्य बड़ा विचित्र जीव है। वह अपनी भूल के समर्थन में भी अपनी बुद्धि की मंजूषा से कभी-कभी ऐसे तर्क निकालता है, जो शाश्वत सत्य बन जाता है। मदिरा के इस नशे में जो तर्क उछला, उसकी अस्मिता शाश्वत थी। मैंने बहुत बाद में मोहग्रस्त अर्जुन से कहा था—‘सर्वभूतस्थितं यो मां’।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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