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इसलिए आपको अपने संकल्प के लिए कोई विकल्प ढूँढ़ना होगा। मैं नहीं चाहता कि राजाओं की ईर्ष्याग्नि प्रजा के सुख-चैन को भस्म कर दे।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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