सह्य होते हुए भी नियति मुझपर निरंतर प्रहार करती रही। पर यह सोचकर कि बार-बार छेनी-हथौड़ी की मार खाने के बाद ही कोई मूर्ति बनती है, पत्थर भी भगवान् हो जाता है, मृण्मय चिन्मय दिखाई देने लगता है, मैंने सारे प्रहार सहे—और यह सोचता रहा कि नियति भी मेरा निर्माण कर रही है। इसीलिए मैं कभी भी थका नहीं, हारा नहीं, श्लथ नहीं हुआ। मुसकराता हुआ सब झेलता रहा।

