P M

97%
Flag icon
क्या यह नहीं हो सकता कि द्रोण के किसी शिष्य का धनुष कभी द्रोण के विरुद्ध ही उठे? न आप जानते हैं और न मैं जानता हूँ कि नियति के प्रकोष्ठ में कैसे-कैसे अद्भुत चमत्कार छिपे हैं!’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate this book
Clear rating