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कूटनीति जब तक रहस्य की मंजूषा में रहती है तब तक वह बहुमूल्य रत्न है, बाहर होते ही वह काँच का टुकड़ा हो जाती है।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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