P M

87%
Flag icon
‘‘पर क्या तुम्हारे सोचने से यह होने वाला है?’’ मैंने बड़े प्रभावशाली ढंग से कहा, ‘‘यदि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही होने लगता तो पांडव वास्तव में भस्म हो गए होते। मनुष्य के वश में बस सोचना है; पर करती नियति है। उसने हम सबको कार्य सौंप दिए हैं। जब तक वे कार्य पूरे नहीं होते, हमें उनसे मुक्ति नहीं मिलती।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate this book
Clear rating