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आपने अभी कहा है कि अर्जुन आपका सबसे प्रिय शिष्य था। क्या उसके लिए आपके आचार्यत्व ने ज्ञान लुटाते हुए निष्पक्षता बरती होगी?’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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