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तुम उससे परेशान हो, जो तुम देख रहे हो या जो घटित होता हुआ तुम्हें दिखाई दे रहा है। ऐसा बहुत कुछ है, जो तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है; क्योंकि दृष्टि की एक सीमा है, वह अपनी परिधि के पार नहीं जा सकती।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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