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मुझे ऐसा आंदोलित समुद्र बहुत अच्छा लगता है। सच पूछिए तो जल का दहाड़ता पुरुषार्थ ऐसे समुद्रों में ही दिखाई देता है।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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