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‘राजनीति की निष्ठुरता एक नारी कभी समझ नहीं सकती।’ ‘‘ ‘और नारी मन की कोमलता तक आपकी निष्ठुर राजनीति कभी पहुँच नहीं सकती।’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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