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मृत्यु की आशंका मन को हिमानी चट्टानों पर बिठा देती है, जिससे पिघल-पिघलकर व्यक्ति का अतीत बहने लगता है—और जो बाध्य हो जाता है, वह सपने की तरह उतराता है।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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