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मेरा एक व्यक्तित्व वह है, जो रुक्मिणी का है, रुक्मिणी के लिए है और एक व्यक्तित्व वह भी है, जो समाज का है और समाज के लिए है। ये दोनों व्यक्तित्व एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हैं कि यदि मैं उन्हें अलग करना चाहूँ भी तो अलग नहीं कर सकता; पर परिस्थितियाँ उन्हें अलग कर देती हैं।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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