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‘‘मैं परिणाम पर कभी नहीं सोचता और न किसीको सोचने की सलाह देता हूँ। जो अपने हाथ में नहीं है, उसपर सोचना क्या! हाँ, इतना अवश्य है कि जो होना है, वही होगा।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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