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‘‘जब शत्रुता मित्रता का मुखौटा लगाकर उपस्थित होती है तब वह बहुत अच्छी लगती है; क्योंकि नाटक यथार्थ से आकर्षक भी होता है और मनोरंजक भी।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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