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मृत्यु से साक्षात्कार कर रहे व्यक्ति के लिए जीवन का मोह अधिक हो जाता है। जीवन जब छूटने को होता है तो वह और अधिक चिपकता है। यह स्थिति उतनी दुःखद नहीं होती, जितनी पीड़ादायक होती है। ऐसी स्थिति में उसके चिंतन को आंदोलित करने की आवश्यकता पड़ती है।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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