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‘जीवन की अनिवार्यता में शस्त्र कभी नहीं आता। शस्त्र की मनुष्य को उस समय आवश्यकता पड़ी, जब जीवन में ईर्ष्या और द्वेष ने प्रधानता पाई थी।’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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