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‘‘उस भगवान् ने, जो मेरे भीतर है, जो मेरी वाणी से बोलता है, जो मेरे नेत्रों से देखता है, जो मेरे कानों से सुनता है, जो अव्यक्त होकर भी मेरे द्वारा व्यक्त है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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