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यही तो जीवन है—और यही उसकी अस्मिता भी है। अग्नि की अस्मिता शीतलता से घिरी रहने में है और प्रकाश का अस्तित्व अंधकार के बीच। यदि अंधकार नहीं तो प्रकाश का महत्त्व क्या? वैसे ही अपने चारों ओर से अंधकार के बीच द्वारका प्रकाश की तरह भभक रही है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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