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जब सत्य का उद्घाटन न किया जा सके तब सत्य की द्विविधा में व्यक्ति को उलझाए ही रखना चाहिए और परिस्थितियों को अपना काम करने देना चाहिए।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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