P M

6%
Flag icon
कितना विचित्र है। लोग जैसे होते हैं, हम उन्हें वैसा देख नहीं पाते वरन् हम जैसे होते हैं, वे वैसे ही दिखाई देते हैं।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate this book
Clear rating