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धर्म को मानिए या न मानिए, वह तो रहेगा ही; क्योंकि वह किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं है कि वह उसे उठाकर फेंक दे। धर्म तो समाज का है, समाज द्वारा है, समाज के लिए है। वह भी तब से जब से समाज है और तब तक रहेगा जब तक समाज रहेगा।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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