P M

39%
Flag icon
आप विश्वास करें, उनकी स्थिति को देखकर शरीर के लिए वस्त्र की उपमा मेरे मन में बैठ गई थी और वही कालांतर में अर्जुन के सामने ‘वासांसि जीर्णानि यथा विहाय’ के रूप में अवतरित हुई थी।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate this book
Clear rating