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‘भगवान् सबको अपनी निर्मिति ही समझता है—चाहे वह पापी हो या धर्मात्मा, चाहे वह शत्रु हो या मित्र। राम भी रावण को अपना मित्र ही समझते थे। उनका शत्रु था रावण का राक्षसत्व, उनका शत्रु था रावण की अधार्मिक वृत्ति।’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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