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दासीपुत्र होने के कारण इतना ज्ञानगर्भित होने पर भी विदुरजी में एक प्रकार की हीनभावना सदा रही। जीवन के अंत तक वे इससे मुक्त नहीं हो पाए। और
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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