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‘‘लोग मुझे यदि इतनी आसानी से समझ जाते तो वे मुझे भगवान् क्यों मानते?’’ मैंने स्वयं पर व्यंग्य करते हुए कहा।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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