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‘‘तब चलने का उद्देश्य क्या होगा?’’ ‘‘आर्यावर्त्त की पूरी राजनीति को अपनी मुट्ठी में रखना और द्रौपदी को अपने मनचाहे के हाथों सौंपना।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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