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केवल मुझपर विश्वास रखते हुए उस भविष्य की प्रतीक्षा करो, जो अपने प्रकोष्ठ में तुम्हारे जीवन का विराट् सत्य छिपाए है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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