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‘‘तुम तो मात्र निमित्त हो। तुमने जो किया, यदि तुम न करते तो कोई और करता। रह गई तुम्हारे पापों की बात, तो मेरे वृद्ध मित्र, पश्चात्ताप के आँसू बड़ी-से-बड़ी पापाग्नि को बुझा देते हैं। उसके लिए कुछ और नहीं करना होता है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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