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‘‘वही रास्ता पकड़ा है, जो रास्ता मेरा है।’’ मैं मुसकराते हुए बड़े विश्वास से बोलता रहा—‘‘मेरे जीवन का रास्ता सदा आरण्यक रहा है। मेरी उपलब्धियों ने मुझे घने अंधकारों के बीच से ही पुकारा है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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