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तुम अभी भविष्य के प्रश्न क्यों खड़े कर रहे हो? इस समय हमारे सामने जो विचारणीय प्रश्न है, हमें अपना चिंतन वहीं तक सीमित रखना चाहिए।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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