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‘‘जब संघर्ष आँसुओं में बदल जाता है तब पराभव के वे ही चित्र दिखाई देते हैं, जो आज द्वारका में दिखाई पड़ रहे हैं।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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