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‘‘पराक्रम और प्रतिभा न तो उत्तराधिकार के आश्रित रही है, न उसने कोई जातीय बंधन स्वीकार किया है—और न वह किसी वैभव के घेरे में बंदी हुई है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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