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पर षड्यंत्र की भी एक प्रकृति होती है। सफल या असफल होने पर—दोनों अवस्थाओं में उसमें दुर्गंध आ जाती है और अंत में सड़े शव की तरह बदबू फेंकता है। आज नहीं तो कल, इसका रहस्य खुलेगा ही।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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