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‘‘कोई भी हमारे कथन का कुछ भी निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है। हम उसकी यह स्वतंत्रता कैसे छीन सकते हैं? फिर यह स्पष्ट समझिए कि बाण को दूर तक मारने के लिए प्रत्यंचा को पीछे खींचना पड़ता है। धनुष को काफी झुकाना पड़ता है। झुकना सदा हीनता का द्योतक नहीं है, राजनीति का एक अस्त्र भी है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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