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क्योंकि मैं कभी किसी व्यक्ति के पक्ष में नहीं होता। यदि होता भी हूँ तो अस्थायी तौर पर; क्योंकि व्यक्ति स्वयं अस्थायी है। उसका अस्तित्व अस्थायी है। उसका मन अस्थायी है। उसका चिंतन अस्थायी है। स्थायी तो इस धरती पर केवल एक धर्म है। और मैं उसीके पक्ष में रहता हूँ।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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