P M

15%
Flag icon
आप संसार की चिंता न करें, पितामह! हम कितना भी छिपाएँ, पर उसकी हजार-हजार आँखों से कोई भी यथार्थ छिपाया नहीं जा सकता। और रहा इतिहास, वह केवल सत्य को स्वीकारता है। असत्य तो उसके पृष्ठों तक ले जाते-जाते स्वयं निर्जीव होकर झड़ जाता है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate this book
Clear rating