‘‘मरीचिका से ग्रसित व्यक्ति को यदि कहीं से जल दिखाई भी पड़े तो उसकी दृष्टि उधर नहीं जाती। उसकी दृष्टि तो मरीचिका की ओर ही लगी रहती है; जो वस्तुतः भ्रम है, भुलावा है, छलना है। इसी प्रकार द्रुपद का प्रतिशोध भी एक छलना है। ऐसे में उसने सत्य की पहचान खो दी है। वह ऐसा विक्षिप्त है, जो अपने लक्ष्य के लिए व्याकुल है, पर अपने लक्ष्य को ही नहीं पहचानता।’’

