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‘‘मैं गंतव्य से अधिक गति पर विश्वास करता हूँ; यद्यपि गंतव्य मेरे लिए अविश्वस्त नहीं है। मेरे जैसे कर्म पर विश्वास करनेवाले लोग, फल को अपनी दृष्टि से रखते हुए भी, कभी फल पर सोचते नहीं; क्योंकि फल पर मुझसे कहीं अधिक अधिकार नियति का है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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