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मृत्यु का वरण भी नियति की इच्छा का ही परिणाम है। उसकी इच्छा के बिना मृत्यु आपका स्पर्श भी नहीं कर सकती।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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