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इसलिए अतीत के अनुभव पर वर्तमान जिन सपनों को गढ़ता है, वही हमारा भविष्य है—और हम उसके पीछे भागते जाते हैं, भागते जाते हैं तथा रह जाता है छटपटाहट भरा असंतुष्ट वर्तमान। शायद यह असंतोष न रहता तो जीवन सारहीन हो जाता।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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