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यह भीगा सवेरा उस नायिका के समान मादक और सुहावना था, जिसका आँचल तो हवा में लहरा रहा हो, पर जिसका झीना वस्त्र उसके शरीर से लिपटकर एकाकार हो गया हो।
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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