P M

95%
Flag icon
किसी और से लड़कर तो मनुष्य जीत भी सकता है, पर वह जब स्वयं अपने से लड़ने लगता है तब पराजित ही होता है।’’ ‘‘और यही पराजय उसकी विजय है।’’ छंदक बीच में ही बोल उठा—‘‘मनुष्य जब स्वयं अपने विरुद्ध खड़ा होता है तो पराजय और विजय के लिए नहीं खड़ा होता, स्वयं को तौलने के लिए खड़ा होता है। यही उसका आत्माकलन है। यह घड़ी बड़े संकट की होती है—और महत्त्व की भी।’’ मैंने छंदक को बड़े ध्यान से देखा और अपने पर बहुत कुछ नियंत्रण करते हुए बोला, ‘‘जब व्यक्ति धराशायी होता है तब उसे हर व्यक्ति ज्ञान देने लगता है।’’
लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate this book
Clear rating