लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
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अस्थायी तौर पर; क्योंकि व्यक्ति स्वयं अस्थायी है। उसका अस्तित्व अस्थायी है। उसका मन अस्थायी है। उसका चिंतन अस्थायी है। स्थायी तो इस धरती पर केवल एक धर्म है। और मैं उसीके पक्ष में रहता हूँ।
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क्रोध वह आग है, जो दूसरों को जलाने के पहले स्वयं को जलाती है।
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‘‘मनुष्य जब स्वयं अपने विरुद्ध खड़ा होता है तो पराजय और विजय के लिए नहीं खड़ा होता, स्वयं को तौलने के लिए खड़ा होता है। यही उसका आत्माकलन है। यह घड़ी बड़े संकट की होती है—और महत्त्व की भी।’’