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एक लक्ष्मण
रेखा से बाहर अपने आपसी मतभेदों को नहीं ले जाने का स्व-अनुशासन दीर्घकाल में सफलता को सुनिश्चित करनेवाला सबसे विश्वस्त कारक है।
हमारी राष्ट्रीय एकता को ‘सेक्यूलरिज्म’ की एक दोषपूर्ण संकल्पना द्वारा दुर्बल नहीं बनाया जाना चाहिए।
सांस्कृतिक एकता का चिरकालिक बोध, जो विभिन्न जातियों, समुदायों और क्षेत्रों के भारतीयों को एक स्वाभाविक राष्ट्रीय इकाई के
रूप में बाँधे रखता है। सन् 1980 और ’90 के दशकों में मैंने इसी विचार को ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के रूप में विकसित किया और उसे इस राष्ट्रव्यापी बहस का विषय बना दिया कि कौन सी बात भारतीय राष्ट्रत्व को परिभाषित करती है।
विकास एक आँकड़े से कुछ अधिक होना चाहिए, जो प्रकट करने से अधिक छिपाता है।
स्कूल में कई प्रतिभाशाली विद्यार्थी विज्ञान और गणित में ऊँचे अंक प्राप्त करते हैं। इसलिए वे सोचते हैं कि ऊँचे अंक दिलानेवाले इन विषयों में उनकी रुचि है। परंतु यह
वास्तव में सच नहीं है। जैसे-जैसे विद्यार्थी बड़ा होता है, उसकी समझ बढ़ती है कि वास्तव में उसकी रुचि क्या है।
अहीर,
संघ का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक एकता, व्यक्तिगत चरित्र-निर्माण
तथा भारत की शानदार सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के पुनरुत्थान पर आधारित उसके पुनर्जागरण में योगदान देना है।
सत्ता की राजनीति उसके कार्यकर्ताओं को भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त करती है।
सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें शक्ति और साहस दे, ताकि हम सदा सही मार्ग पर चल सकें; भय हमें विचलित न कर सके और विलासिता हमें ललचा न सके, ताकि आध्यात्मिक और भौतिक दोनों रूपों में एक महान् और महाशक्तिशाली भारत के
पुनर्निर्माण में हम यथाशक्ति अपना योगदान कर सकें, ताकि पुनर्जाग्रत् भारत विश्व शांति को बनाए रखने और विश्व के विकास के संवर्धन के लिए एक विश्वसनीय व पवित्र साधक बन सके।’
यदि कोई राजनेता संघर्ष-निवारण और सौहार्द पैदा करने में सफल होना चाहता है तो उसे अपने में इन छह मौलिक गुणों का विकास करना चाहिए—जनता से निरंतर संपर्क बनाए रखकर
उसकी नब्ज पर नजर रखना, निष्पक्षता, निष्ठा, धैर्य, न्यायप्रियता और दृढ़ता।
2 फरवरी, 1835 को लॉर्ड मैकाले द्वारा ब्रिटिश संसद् में दिए गए संबोधन की याद आती है॒: ‘मैंने पूरे भारत की यात्रा की और ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो कि भिखारी हो या एक चोर हो। इस तरह की संपत्ति मैंने इस देश में देखी है, इतने ऊँचे नैतिक मूल्य, लोगों की इतनी क्षमता, मुझे नहीं लगता कि कभी हम इस देश को जीत सकते हैं, जब तक कि हम इस देश की रीढ़ को नहीं तोड़ देते, जो कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में है। इसलिए मैं प्रस्ताव करता हूँ कि हमें इसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था, इसकी संस्कृति को बदलना होगा। इसके लिए यदि हम भारतीयों को यह सोचना सिखा दें कि जो भी विदेशी है और अंग्रेज है, वह उसके
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हमारा विरोध अंग्रेजी से नहीं, बल्कि अंग्रेजियत से है, जोकि लोगों में अपनी जड़ों और संस्कृति के प्रति हीनभावना उत्पन्न करती है।
उस देश का कोई भविष्य नहीं है, जहाँ के लोग भयभीत रहते हैं। मानवीय स्वतंत्रता के बिना भौतिक और शारीरिक संपन्नता केवल
अच्छा भोजन पानेवाले घरेलू जानवरों और पशुओं के लिए पर्याप्त है। यह इनसानों के लिए नहीं है।
मोरारजीभाई का ईश्वर में दृढ़ विश्वास था। इस विषय में उन्होंने अपने संस्मरण में जो लिखा है, वह सभी के लिए उपयोगी मार्गदर्शन है— ‘मेरी कैद ने ईश्वर में मेरे विश्वास को और दृढ़ करने में मदद की। यही विश्वास था, जिसकी मदद से मैं दुनिया के तूफानों के बीच शांत बना रह सका। मैंने आत्ममंथन किया। मैं स्वयं को कैसे सुधार सकता हूँ? मैं लगातार स्वयं से यह प्रश्न पूछता रहा...। मैंने महसूस किया कि चिंता कोई मदद नहीं करती है। उसके विपरीत, यह निर्णय पर बाधा डाल देती है। यह व्यक्ति को दूसरों की मदद करने से रोकती है और प्रगति को अवरुद्ध करती है। मैं स्वयं को पूरी तरह से ईश्वर की इच्छा पर समर्पित कर अपने सभी
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और मैंने सोचा कि अलेक्जेंडर ही देश
इस उपन्यास में दावा किया गया है कि मनुष्य को जीवन में या तो सार्थकता प्राप्त होगी या सुख; लेकिन मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे दोनों ही भरपूर मात्रा में मिले हैं। सार्थकता प्रयोजन से आती है, मिशन की भावना से आती है, जीवन में हम कुछ भी व्यवसाय क्यों न करें। इसमें इस प्रश्न का उत्तर निहित है, ‘हमें क्यों जीना चाहिए?’ इसका उत्तर हमें अपने अतीत—वैयक्तिक तथा सामूहिक—की ओर ले जाता है; और साथ ही, भविष्य के बारे में हमारे स्वप्नों और लक्ष्यों की ओर भी। यह हमें अनुभव कराता हैं कि हमारे जीवन की सार्थकता किसी कर्तव्य के निर्वहन में है, तथा वर्तमान हमें कार्यक्षेत्र एवं अवसर दोनों प्रदान करता हैं, ताकि हम
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कोवे में महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि आत्म-विकास करने या प्रभावशाली बनने के लिए व्यक्ति को मात्र मीठी बातें ही नहीं करनी या लोगों के जन्मदिन ही याद नहीं रखने। ये शिष्टाचार की बातें अच्छी हैं, लेकिन व्यक्ति की ईमानदारी तथा निष्ठा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
हम अपने आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शक्ति के प्रयोग, संसाधनों के समुचित उपयोग और अपनी विरासत के मार्गदर्शन से किस तरह एक स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, साक्षर भारत, शक्तिशाली भारत, समृद्ध भारत और प्रबुद्ध भारत का निर्माण कर सकते हैं।
वाजपेयी सरकार के छह वर्षीय कार्यकाल में राजग में निम्नलिखित सदस्य थे—महाराष्ट्र की शिवसेना (नेता: बाला साहेब ठाकरे), पंजाब का शिरोमणि अकाली दल (नेता: प्रकाश सिंह बादल), बिहार का जनता दल (यू) (नेता: जॉर्ज फर्नांडीज एवं नीतीश कुमार), उड़ीसा का बीजू जनता दल (नेता: नवीन पटनायक), पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस (नेता: ममता बनर्जी), हरियाणा का इंडियन नेशनल लोकदल (नेता: ओमप्रकाश चौटाला), तमिलनाडु का ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (नेता: डॉ. जयललिता), तमिलनाडु का ही द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (नेता: एम. करुणानिधि), तमिलनाडु का ही मरुमालार्ची द्रविड़ मुन्नेत्र कळगम (नेता: वाइको), तमिलनाडु की ही
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