सिद्धार्थ के सामने एक लक्ष्य था, इकलौता लक्ष्य : रिक्त हो जाने का, प्यास से रिक्त, इच्छाओं से रिक्त, सपनों से रिक्त, सुख और दुःख से रिक्त हो जाने का। अपने लिए मर जाना, स्वत्वहीन हो जाना, एक नितान्त रिक्त हृदय के साथ प्रशान्ति पा लेना, निःस्वार्थ विचारों में चमत्कारों के घटित होने के लिए तैयार रहना - यह था उसका लक्ष्य।