मैं एक पत्थर से प्रेम कर सकता हूँ, गोविन्द, और एक वृक्ष या छाल के एक टुकड़े को भी। ये वस्तुएँ हैं, और वस्तुओं से प्रेम किया जा सकता है। लेकिन मैं शब्दों से प्रेम नहीं कर सकता। इसीलिए उपदेश मेरे लिए किसी काम के नहीं हैं, उनमें किसी तरह की कठोरता, किसी तरह की कोमलता, कोई रंग, कोई धारें, कोई गन्ध, कोई स्वाद नहीं होता, उनमें शब्दों के सिवा और कुछ नहीं होता। कदाचित उपदेश ही हैं जो तुमको शान्ति की प्राप्ति से दूर रखते हैं, कदाचित वे बहुत सारे शब्द ही हैं। क्योंकि मोक्ष और श्रेय भी, संसार और निर्वाण भी मात्र शब्द ही हैं, गोविन्द। ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो निर्वाण हो; केवल निर्वाण शब्द भर है।"