विचार और इन्द्रियाँ दोनों ही सुन्दर वस्तुएँ हैं, अन्तिम अर्थ दोनों के ही पीछे छिपा हुआ है, दोनों को सुनना होगा, दोनों का आनन्द लेना होगा, दोनों का ही न तो तिरस्कार करना उचित होगा न ही उनको बढ़ाचढ़ाकर देखना उचित होगा, दोनों से ही उभरती अन्तरतम सत्य की आवाज़ पर पूरा-पूरा ध्यान देना होगा।