आज, इन कृत्यों ने उसको तज दिया है, अब इनमें से कोई भी उसका अपना नहीं रहा, न उपवास, न प्रतीक्षा, न ही चिन्तन। सबसे अधिक करुणाजनक बात यह थी कि उसने उनको तिलांजलि दे दी थी, उन वस्तुओं के लिए जो सबसे अधिक तीव्रता से फीकी पड़ जाने वाली हैं, ऐन्द्रिक वासना के लिए, सुखद जीवन के लिए, समृद्धि के लिए! सचमुच ही उसका जीवन विचित्र-सा रहा है। अब लगता है, वह एकबार फिर से एक बच्चे जैसा साधारण मनुष्य बन गया है। सिद्धार्थ ने इस परिस्थिति के बारे में सोचा। सोचना उसके लिए भारी पड़ रहा था, सचमुच ही सोचने को उसका मन नहीं कर रहा था, लेकिन उसने अपने को अनिच्छापूर्वक इस काम में लगाया। अब, उसने सोचा, चूँकि ये आसानी से
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