सिद्धार्थ को गहरा झटका लगा था। तो स्थिति यहाँ तक आ पहुँची थी, तो वह पतन की इस पराकाष्ठा पर पहुँच चुका था, इस सीमा तक अपने रास्ते से भटक चुका था और सारे ज्ञान द्वारा इस सीमा तक तज दिया गया था, कि वह मृत्यु की कामना कर सका, कि इस इच्छा को, इस बचकानी इच्छा को, उसके भीतर बलवती होने की छूट मिल गयी थी कि अपनी देह का त्याग कर विश्रान्ति पा ली जाए! जो काम इन हाल के दिनों की समूची यन्त्रणा नहीं कर सकी थी, उद्वेगमुक्त करने वाले सारे बोध, सारी हताशाएँ नहीं कर सकी थीं, वह इस क्षण में घटित हो गया, जब ओ३म् ने उसकी चेतना में प्रवेश किया : वह स्वयं को, अपने विषाद और भूल को लेकर सजग हो उठा।